भारतीय पेटेंट कार्यालय दिल्ली के द्वारा छात्रों, अध्यापकों तथा शोधकर्ताओं में बौद्धिक संपदा के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जो माननीय प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने का एक बेहतरीन अस्त्र है। इसी अभियान के तहत शासकीय गुंडाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोण्डागाँव में एक दिवसीय ऑनलाइन बौद्धिक संपदा संरक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता डॉ मनोज कुमार सिंह रहे जो भारतीय पेटेंट कार्यालय नई दिल्ली में पेटेंट तथा डिजाइन परीक्षक के पद पर नियुक्त हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत प्राचार्य डॉक्टर चेतन राम पटेल के स्वागत उद्बोधन से हुई जिसमें उन्होंने इस प्रकार के आयोजनों को समय की मांग बताया साथ ही उन्होंने कहा कि बौद्धिक संपदा के बारे में सभी छात्रों प्राध्यापकों और शोधकर्ताओं को ज्ञान होना चाहिए, जिससे वे आगे अपनी कृतियों कलाओं या अन्य बौद्धिक संपदा का उचित संरक्षण कर सकें।
कार्यक्रम के वक्ता डॉ मनोज कुमार सिंह ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के द्वारा दिए गए अपने व्याख्यान में शुरू में बताया कि प्रतिवर्ष विश्व में लाखों पेटेंट होते हैं जिनमें गत वर्ष भारत में केवल 12000 पेटेंट रजिस्टर किए गए और उनमें भी केवल 2000 पेटेंट ही अकादमिक संस्थाओं की ओर से होते हैं। आगे की चर्चा में उन्होंने बताया कि जैसे हमारी चल और अचल संपत्ति होती है हम उन संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन करवाते हैं ताकि इन पर कोई और अपना अधिकार ना जमा सके इसी प्रकार बौद्धिक संपदा भी हमारी संपत्ति का ही एक भाग होता है। इसका भी पंजीयन आवश्यक है ताकि कोई और इस पर अपना अधिकार ना दिखा सके।
डॉ सिंह ने बताया कि बौद्धिक संपदा पांच प्रकार की होती है पहला- पेटेंट जिसमें कोई विशेष उत्पाद या बनाने की कोई विशेष विधि आ सकती है । दूसरा- डिजाइन जो देखने में आकर्षक और अलग लगे वह डिजाइन के अंतर्गत आता है जैसे विभिन्न प्रकार के खिलौने, विभिन्न आभूषणों के डिजाइंस इत्यादि। तीसरा-ट्रेडमार्क जिसमें कोई नाम, शब्द या प्रतीक चिन्ह, जो कि किसी संस्था या व्यक्ति विशेष को दूसरों से पृथक करता है, इसके अंतर्गत आता है यह समाज में या विश्व में आप की विशिष्टता को दर्शाता है जैसे मैकडॉनल्ड का एम, प्यूमा का प्रतीक चिन्ह, एडिडास, नाइकी का प्रतीक चिन्ह कोका कोला की बोतल इत्यादि। चौथा- कॉपीराइट। लेखकों की कृतियां, चित्रकारों की चित्रकारी, आर्किटेक्चर या संगीतज्ञ के संगीत विशेष इत्यादि कॉपीराइट के अंतर्गत आते हैं। यह किसी दूसरे अनाधिकृत व्यक्ति को इसका प्रयोग करने से रोकते हैं। इसके अंतर्गत साहित्य कार्य, कलात्मक कार्य, नाट्यात्मक कार्य, संगीत कार्य, चलचित्र सभी आ सकते हैं और पांचवी बौद्धिक संपदा है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं वरन किसी स्थान विशेष में पाई जाने वाली विभिन्न वस्तुओं को विशेषता प्रदान करती है जैसे- मकराना मार्बल राजस्थान के मकराना में पाया जाता है, कांचीपुरम सिल्क, रतलामी सेव, दार्जिलिंग चाय, रत्नागिरी के आम, बिहार के शाही लीची, कश्मीरी जाफरान, मधुबनी पेंटिंग इत्यादि।
डॉ सिंह ने बताया कि किसी भी बौद्धिक संपदा को फैलाने या पब्लिश करने के पहले इसका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होता है । उन्होंने बहुत सारे फ्री और पेड ऑनलाइन प्लेटफार्म की जानकारी दी जहां पर विभिन्न बौद्धिक संपदा के पंजीकृत होने की जानकारी प्राप्त हो सकती है अपने प्रेजेंटेशन की आखिरी स्लाइड में उन्होंने प्रतिभागियों से अपने वक्तव्य से संबंधित रोचक प्रश्न पूछे जिसमें अधिकतम प्रतिभागियों ने सही जवाब दिया।
कार्यक्रम का संचालन रसायन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष नसीर अहमद कर रहे थे तथा आभार प्रदर्शन डॉ आशीष कुमार आसटकर ने किया जिसमें उन्होंने मुख्य वक्ता सहित कार्यक्रम से जुड़े कोण्डागाँव एवं छत्तीसगढ़ के अन्य महाविद्यालयो के समस्त प्राध्यापकों, छात्रों एवं शोधार्थियों का आभार प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम के एक प्रतिभागी लक्ष्मी नारायण सिन्हा जो शासकीय नवीन महाविद्यालय कंडेल में अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में पदस्थ हैं ने अपने प्रश्न में पूछा की क्या कोई व्यक्ति जो विभिन्न पशु पक्षियों की आवाज निकाल सकता है वह भी बौद्धिक संपदा के अंतर्गत आती है और क्या इसका भी पंजीयन कराया जा सकता है? जवाब में डॉ सिंह ने कहा कि कोई भी कृति जो लिपिबद्ध हो या जिसे पंजीयन कार्यालय में किसी रूप में प्रस्तुत किया जा सके जैसे साउंड रिकॉर्डिंग इत्यादि सभी बौद्धिक संपदा के अंतर्गत आती है और उनका भी पंजीयन हो सकता है। इस आयोजन में शासकीय गुंडाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शासकीय आदर्श आवासीय कन्या महाविद्यालय कोण्डागाँव के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के अन्य महाविद्यालयों के सौ से अधिक प्राध्यापक, छात्र-छात्राएं एवं शोधकर्ता जुड़े रहे।